चेक बाउंस होने पर क्या करें | Negotiable Instrument Act In Hindi


हमलोगों में से बहुत से लोगों ने कभी न कभी चेक बाउंस होने की समस्या का सामना जरूर किया होगा। जब कभी हमारे सामने चेक बाउंस होने जैसी समस्या आती है तो हम ये नही समझ पाते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए।

इस लेख में हम यही जानेंगे कि अगर कोई चेक बाउंस हो जाता है तो ऐसी स्थिति में हमारे कानूनी अधिकार क्या-क्या हैं ? इसलिए लेख के साथ बने रहें।चेक-बाउंस-होने-पर-क्या-करें

चेक बाउंस होने की स्थिति में हम क्या-क्या कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं ये जानने से पहले ये समझ लेते हैं कि आखिर ‘चेक बाउंस होना’ किसे कहते हैं।

चेक बाउंस होना क्या होता है ?

चेक बाउंस होना क्या होता है इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं- मान लिया आप एक दुकानदार हैं किसी ग्राहक ने आपसे कोई समान खरीदा और उसके मूल्य का भुगतान करने के लिए आपको चेक दे दिया।

आप उस चेक को अपने बैंक खाते में डालते हैं, अब यहां यह जरूरी है कि चेक देने वाले ग्राहक के खाते मे उतने पैसे होने चाहिए जितनी राशि का चेक है यदि ऐसा नही होता है तो वह चेक बाउंस हो जाएगा।

इसका अर्थ ये हुआ कि जितनी राशि का चेक ग्राहक ने आपको दिया था उतनी रकम उसके बैंक खाते में थी ही नही। इसे ही चेक का बाउंस होना कहा जाता है। यदि बैंक की भाषा मे कहा जाए तो इसे Dishonored Cheque कहते हैं।

चेक बाउंस होने पर कानूनी प्रावधान

अब बात करते हैं कि किसी व्यक्ति के साथ यदि ऐसी घटना घट जाती है अर्थात उसको मिला चेक बाउंस हो जाता है तो उसके सामने क्या-क्या कानूनी प्रावधान है जिससे उसको अपने पैसे प्राप्त हो सके।

कानून के अनुसार चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है। यहां आपको पूरी कानूनी प्रक्रिया की जानकारी प्रदान की जा रही है।

चेक बाउंस होने पर शिकायत कैसे दर्ज करें

चेक बाउंस होने का कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है और इस कृत्य के लिए एन.आई. अधिनियम (Negotiable Instrument Act – 1881) की धारा 138 के तहत चेक की राशि का दोगुना तक का जुर्माना लगाया जा सकता है या 2 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना और कारावास दोनों हो सकता है।

यदि किसी व्यक्ति को प्राप्त चेक बाउंस हो जाता है तो वह चेक देने वाले को एक वैधानिक कानूनी मांग का नोटिस जारी करेगा और नोटिस प्राप्ति के 15 दिनों तक यदि चेक प्राप्तकर्ता की समस्या का समाधान नहीं होता है तो प्राप्तकर्ता 15 दिनों की समय सीमा समाप्त होने के पश्चात 30 दिन के अंदर संबंधित क्षेत्र के मजिस्ट्रेट ( जहां भुगतान हेतु चेक प्रस्तुत किया गया था) के समक्ष एन.आई. अधिनियम-1881 की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करा सकता है।

इसके साथ-साथ IPC की धारा 420 /406 और Cr.Pc. की धारा156(3) r/w 200 के तहत भी शिकायत दर्ज कर सकता है।

मुकदमा दाखिल हो जाने के बाद शिकायतकर्ता को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर पूरे मामले में अपना बयान न्यायालय में दर्ज कराना होगा।

यदि शिकायतकर्ता के बयान से मजिस्ट्रेट संतुष्ट हो जाता है तो चेक जारीकर्ता को न्यायालय में उपस्थित होने हेतु समन जारी करता है।

समन प्राप्त होने के पश्चात चेक जारीकर्ता को नियत तिथि पर पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना होगा।

यदि चेक जारीकर्ता न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर चेक की देनदारी से इंकार करता है तो उसे अपनी जमानत हेतु आवेदन प्रस्तुत करना होगा इसके बाद उसका बयान दर्ज किया जाएगा।

इसके पश्चात न्यायालय मामले के आपराधिक परीक्षण की कार्यवाही के साथ आगे बढ़ेगी साथ-साथ दोनों पक्षों को अपने-अपने साक्ष्य और दलीलें समय-समय पर न्यायालय में दाखिल करना होगा।

 दोनों पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद यदि न्यायालय चेक जारीकर्ता को चेक बाउंस होने का दोषी पाती है तो आर्थिक दंड के साथ दोष सिद्धि का निर्णय पारित करेगा जो कि वाद की परिस्थितियों के अनुसार दंड स्वरूप चेक जारीकर्ता को चेक राशि का दोगुना जुर्माना या 2 वर्ष का कारावास या जुर्माना और कारावास दोनों  हो सकता है।

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