स्विंग ट्रेडिंग Vs लांगटर्म इन्वेस्टमेंट
शेयर बाजार से पैसे कमाने के लिए दुनिया भर मे समय – समय पर नए – नए ट्रेडिंग तरीकों का आविष्कार होता रहा है जैसे – इंट्राडे ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग, लांगटर्म इन्वेस्टमेंट, फ्यूचर और ऑप्शन आदि।
अपनी अपनी योग्यता के अनुसार जिसे ट्रेडिंग का जो तरीका पसंद आता है वह उसी तरीके मे ट्रेडिंग करता है।
इस लेख में स्विंग ट्रेडिंग और लांगटर्म इन्वेस्टमेंट में क्या समानता है और क्या अंतर है इस विषय पर बात की जाएगी।
स्विंग ट्रेडिंग Vs लांगटर्म इन्वेस्टमेंट
स्विंग ट्रेडिंग ( Swing Trading )
स्विंग ट्रेडिंग, इंट्राडे ट्रेडिंग से भिन्न है जहां इंट्राडे ट्रेडिंग में आपको ब्रोकर द्वारा मार्जिन मनी प्राप्त होती है तथा उसी दिन आपको शेयर खरीद कर मार्केट बंद होने से पहले बेचकर बाहर निकलना होता है। किसी भी हालत में आप अपने सौदे को अगले दिन तक नहीं ले जा सकते हैं।
स्विंग ट्रेडिंग, लांगटर्म ट्रेडिंग की भांति ही होती है इसमें ब्रोकर द्वारा मार्जिन प्राप्त नही होता है। लांगटर्म की भांति आप स्विंग ट्रेडिंग के लिए जितने शेयर खरीदते हैं उनका पूरा पैसा आपको अदा करना होता है।
जब एक बार आप शेयर खरीद लेते हैं तो यह पूरी तरह आप पर ही निर्भर करता है कि आप उसे कब बेचते हैं, यदि आप इसे कुछ दिनों, कुछ हफ़्तो या कुछ महीनों में बेचकर अपना प्रॉफिट बुक कर लेते हैं तो यह स्विंग ट्रेडिंग कहलाता है।
लेकिन यदि आप स्विंग ट्रेडिंग को आधार बनाकर ही ट्रेडिंग करते हैं तो कुछ मामलों में यह लांगटर्म इन्वेस्टमेंट से भिन्न हो जाता है।क्योंकि लांगटर्म इन्वेस्टमेंट और स्विंग ट्रेडिंग के लिए अलग-अलग रणनीतियां बनानी होती हैं।
मुख्यतः स्विंग ट्रेडिंग के लिए किसी कंपनी का फंडामेंटल अधिक मायने नहीं रखता है बल्कि यहां टेक्निकल एनालिसिस ज्यादा कारगर होता है। टेक्निकल एनालिसिस द्वारा ही अपना छोटा छोटा लक्ष्य निर्धारित किया जाता है और लक्ष्य मिलते ही शेयर बेचकर बाहर निकल जाया जाता है।
स्विंग ट्रेडिंग में मुख्यतः कुछ दिनों, कुछ हफ्तों या एक दो महीने का ही लक्ष्य निर्धारित किया जाता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कम समय मे छोटे-छोटे प्रॉफिट के लिए निवेश करना ही स्विंग ट्रेडिंग कहलाता है।
लेकिन स्विंग ट्रेडिंग के लिए स्टॉक का चयन काफी सटीक होना चाहिए वरना प्रॉफिट बना पाना असंभव होता है।
लांगटर्म इन्वेस्टमेंट ( Long-Term Investment )
लांगटर्म इन्वेस्टमेंट में किसी शेयर को खरीदने की वही प्रक्रिया होती है जो स्विंग ट्रेडिंग में होती है फर्क सिर्फ इतना है कि स्विंग ट्रेडिंग में जब कोई शेयर खरीदा जाता है तो उसका एक छोटा सा लक्ष्य निर्धारित कर के कुछ दिनों या कुछ हफ्तों में उस शेयर को बेच दिया जाता है।
वही लांगटर्म के लिए जो शेयर खरीदा जाता है लंबे समय के निवेश को लक्ष्य बनाकर खरीदा जाता है यह समय 2- 4 वर्ष का भी हो सकता है 10- 20 वर्ष का या इससे भी अधिक हो सकता है।
लांगटर्म में निवेश करके शेयर बाजार से काफी बड़ा प्रॉफिट बनाया जाता है क्योंकि यहां निवेशक को ‘पावर आफ कंपाउंडिंग’ का लाभ प्राप्त होता है। जितने लोगों ने शेयर बाजार से मोटा पैसा कमाया है लांगटर्म इन्वेस्टमेंट से ही कमाया है।
लांगटर्म निवेश के लिए टेक्निकल एनालिसिस की जरूरत बहुत कम होती है यहां किसी कंपनी के फंडामेंटल को देखकर निवेश किया जाता है।
लांगटर्म में निवेश के लिए एक ही बार किसी अच्छे स्टॉक को चुनना होता है और उसे खरीद कर लंबे समय के लिए अपने पास रख लिया जाता है। जितना अधिक समय बीतता है उतना अधिक फायदा हमें देखने को मिलता है।
लांगटर्म निवेश में अपने समय की बचत तो होती ही है, इसके अलावा बाजार के छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव से भी कोई घबराहट नहीं होती है।
निष्कर्ष
लांगटर्म निवेश और स्विंग ट्रेडिंग दोनों ही अपनी अपनी जगह सही है, दोनों में ट्रेड करने का तरीका भी एक ही है।
फर्क सिर्फ इतना है कि किसी को जल्दी जल्दी प्रॉफिट बुक करने में मजा आता है तो किसी को अपने निवेश में पावर आफ कंपाउंडिंग देखने में मजा आता है।
कम समय में छोटा-छोटा लाभ लेना है तो स्विंग ट्रेडिंग बेहतर है, और मल्टीपल लाभ लेना हो तो लांगटर्म निवेश बेहतर है। किंतु दोनों ही परिस्थितियों में स्टॉक का चयन सटीक करना जरूरी है।
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